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इस दोपहर में / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर
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इस दोपहर में:
जबकि गिलहरी ने पेड़ों पर
अनथक उतर-चढ़ मचा रखी है
और नन्ही मकड़ी अपने तार फैलाने में जुटी है
चिड़ियाँ सूखे तिनके चुनने में व्यस्त
झरे पत्ते भी बैठे नहीं हैं चुप
स्थिर पेड़ की छाया सरक रही है
और चींटियाँ मरे तिलचट्टे को
उठाए जा रहीं
लेकिन यह समय निठल्ला बैठा है
जबकि घड़ी के काँटे झूठा दिलासा दिये जा रहे
दोपहर की उदासी सरोद का आलाप है
शाम को
डोअर बेल की आवाज़ पर
भागेंगी चूड़ियाँ
बिंदी में रक्त और मचल उठेगा
शाम सितार पर ‘जोड़’ बजाती आएगी।