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इस बरस फिर / हरे प्रकाश उपाध्याय

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इस बरस फिर बारिश होगी
मगर पानी
सब बह जाएगा समुद्र में
बता रहे हैं मौसम विज्ञानी
इस बरस पौधों की जड़ सूख जाएगी
मछली के कंठ में पड़ेगा अकाल
ऐन बारिश के मौसम में

इस बरस फिर ठंड होगी
और ठिठुरेंगे फुटपाथी
महलों में वसन्त उतरेगा इस बरस फिर
जाड़े के मौसम में
बिने जाएँगे कम्बल
मगर उसे व्यापारी हाक़िम-हुक़्मरान
धनवान ओढ़ेंगे
सरकार बजट में लिख रही है यह बात

इस बरस फिर आयेगा
वसन्त
मगर तुम कोपल नहीं फोड़ पाओगे बुचानी मुहर

इस बरस फिर
लगन आयेगा बता रहे हैं पंडी जी
मगर तुम्हारी बिटिया के बिआह का संजोग नहीं है करीमन मोची
इस बरस फिर तुम जाड़े में ठिठुरोगे
गरमी में जलोगे
बरसात में बिना पानी मरोगे सराप रहे हैं मालिक
अपने आदमियों को।

बढ़ई इस बरस चीरेगा लकड़ी
लोहार लोहा पीटेगा
चमार जूता सिएगा
और पंडीजी कमाएँगे जजमनिका
बेदमन्त्र बाँचेंगे
पोथी को हिफ़ाज़त से रखेंगे
और सबकुछ हो पिछले बरस की तरह
आशीर्वाद देंगे ब्रह्मा, विष्णु, महेश....!