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इस बहाने / अरविन्द कुमार खेड़े
Kavita Kosh से
मैं गाहे-बगाहे
जिक्र करता हूँ ख़ुदा का
कि इस बहाने याद आता है ख़ुदा
कि इस बहाने मैं याद करता हूँ ख़ुदा को
कि इस बहाने मेरी ढीली रस्सी
तन जाती है
कि रस्सी के तनते ही
मेरे अंदर का किरदार हो उठता है सावधान
तनी हुई रस्सी पर सजग होकर
दिखाता है अपना करतब।