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इस शहर में / रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
Kavita Kosh से
इस शहर में बहुत रोशनियाँ हैं चलो अंधेरे में चांद देखेंगे
किसी पुल पे बैठ कर चांदनी के शहर का ख्वाब देखेंगे
यहां लड़कियाँ चांद और सूरज की किरनों से बनी हैं
चलो उस गली में कोई वाह देखेंगे
इस शहर में भटकने के लिए बहुत मोड़ हैं
हम हर मोड़ पर खड़े होकर नई राह देखेंगे
इस शहर की दुनिया में कोई बात वाला है ज़रूर
हमें मिले न मिले वो हम हर शख़्स में शाह देखेंगे
तुम मोड़ लो अपना चेहरा किसी अजनबी जैसे
देखना हमको है हम रोज़ तुममें नई चाह देखेंगे