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इस हजूम में / सरोज परमार
Kavita Kosh से
इन तनी हुई मुठ्ठियों में
मुद्दे नहीं हैं
सहज भरी है हवा
पताकाओं की ऊँचाई से
मत लगाओ कयास जश्न का
इस हजूम में ज़्यादा हैं बछड़े
इन्हें इल्म हो गया है
सियासती रिवाज़ों का