ईश्वर का यश / मुंशी रहमान खान
(यहाँ से दोहा अधर तक होठों के सिरे से सुई लगाकर कहें)
चौताल अधर
गुरु चरनन सिर नाई, ईश गुण गाई।। टेक
नारि अहिल्या रही अध लीन्हें सिला शरीर धराई।
धूरि चरन रघुनाथ की छूकर हो, गई स्वर्ग हर्षाई।।
ईश गुण गाई।।1
गणिका रही अधिक अध छाई नहिं कछु राह लखाई।
नीक सीख कीर को दीन्हीं हो, जाकर स्वर्ग अघाई।।
ईश गुण गाई।।2
रह्मो किरातन के संग तस्कर हनैं राह जन जाई।
सात ऋषी दुई अक्षर दीन्हे हो, गयो स्वर्ग लवलाई।।
ईश गुण गाई।।3
नहिं रसना गुण गाऊँ तोरे शारद शेष थकाई।
नीक सीख 'खान' यह देवैं हो, रटहु हृदय रघुराई।।
ईश गुण गाई।।4
दोहा अधर - निराकार करतार इक जिन यह रचा जहाँन।
नहीं जना उसे काहु न नहीं, नारि संतान।। 5
(यहाँ तक सुई लगावै)
(इस ईश्वरीय यश को दोनों होठों के सिरे से सुई लगाकर दोहा अधर तक सज्जन जन उच्चारण करें।)
अधर
ईश्वर एक युगल नहिं कोई, ईश्वर कार्य छिनक जग होई।। 1
दंड एक वह रचै संसारा, जो चाहै इक कला संहारा।। 2
है नहिं देह गेह ईश्वर के, रहत सत्य उर है नर जी के।। 3
करै कार्य नहिं हाथ लगावै, हैं नहिं चरण जगत नित धावै।। 4
नहिं लोचन देखै संसारा, श्रवण नहीं सुनि नाद उचारा।। 5
घ्राण नहीं जग लेत सुगंधा, तजै ईश अस है नर अंधा।। 6
शक्ति तोरि जग रही दिखाई, निराकार वह नहीं लखाई।। 7
नहिं कछु जोर तोर गुण गाऊँ, चरण लाग निज शीश झुकाऊँ।। 8
दोहा अधर
करता धरता जगत का, धरती रचा अकाश।
तज कर ऐसे ईश के, नर जग रहत निरोश।। 1
छंद अधर
ईश्वर जगदीश है दोष से छत्तीस है,
दासन का शीश है दीनानिधान है।
दुष्ट का संहार है अहंकार का छार है,
सेवका उद्धार है करुणानिधान है।।
क्रोधी को काल है निंदक को जाल है,
ज्ञानी को ढाल है दानी को दान है।
सच्चा जो दास है जग से निराश है,
ईश्वर की आस है स्वर्गहि ठिकान है।।
दोहा अधर
कुरदत है अल्लाह की जल से हैं इंसान।
देहु तलाक गुनाह को सुख से रहो जहाँन।। 1
(यहाँ तक सुई लगावै)