ईश्वर के अधीन / स्वदेश भारती
न जाने क्यों ईश्वर ने
पृथ्वी बनाई विशाल और सुन्दर
फिर उसे दिया असीमित
मनोरम सौन्दर्य सुषमा हरीतिमा
तरह-तरह के पेड़-पौधों से रचे सघन जँगल
बर्फाच्छादित पर्वत-शिखर, बादल
नदिया, सागर
बनाए किसिम-किसिम के फूल, पौधे,
धनधान्य भरे खेत, बाग, गांव, नगर
बनाए उसने स्त्री, पुरुष,
विविध दुग्धधारी पशु,
रँग बिरँगे पक्षी सुन्दर
दिए मानव को ज्ञान प्रखर
विज्ञान, कला से भरा जीवन
आनन्द, सम्प्रीति-स्फुरण
और दिए उपादान सुख, शान्ति का वरण
किन्तु ईश्वर ने क्यों दिए
मानव को लोभ, लिप्सा, आकाँक्षा, अहँकार
काम, क्रोध, भोग-सँचरण
क्यों दिए ईश्वर ने मनुष्य को
वासना, हिंसा, प्रतिहिंसा, पिपासा
सत्ता दोहन, दासता-जन्य परिभाषा
क्यों दिए तरह-तरह के विनाशक अस्त्र
क्यों दिए अमीरी, ग़रीबी, आशा दुराशा
क्यों दिए देव, मानव, दानव में
विनाश की प्रवृत्ति, आत्मक्षरण
कि एक समय हो जाएगा सर्वस्व इति
क्यों बना ऐसी दुनिया, हे विश्वम्भर !
इतनी सुन्दर प्रकृति...।
झाउ का पुरवा (प्रतापगढ़), 10 अप्रैल 2013