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ईश्वर यहीं कहीं प्रवेश करता है / शरद कोकास
Kavita Kosh से
पत्थर को मोम बना सकता है
बच्चे की आँख से ढलका
आँसू का बेगुनाह कतरा
गाल पर आँसू की लकीर लिए
पाँव के अंगूठे से कुरेदता वह
अपने हिस्से की ज़मीन
भिंचे होंठ तनी भृकुटी
हाथ के नाखूनो से
दीवार पर उकेरता
आक्रोश के टेढ़े- मेढ़े चित्र
भय की कश्ती पर सवार होकर
पहुँचना चाहता वह
सर्वोच्च शक्ति के द्वीप पर
बच्चे के कोरे मानस में
ईश्वर यहीं कहीं प्रवेश करता है ।