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ईसुरी की फाग-24 / बुन्देली
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♦ रचनाकार: ईसुरी
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बाँकी रजउ तुमारी आँखें
रव घूंगट में ढाँके।
हमने अबै दूर से देखीं
कमल फूल सी पाँखें।
जिदना चोट लगत नैंनन की
डरे हजारन कांखें।
जैसी राखे रई 'ईसुरी'
ऐसईं रईयो राखें।
भावार्थ
महाकवि 'ईसुरी' अपनी प्रेयसी 'रजऊ' की आँखों की प्रशंसा करते हुए कहते हैं — प्रिय रजऊ, तुम्हारी आँखें बेहद सुन्दर हैं इनको तुम घूँघट में ही छिपा लो। अभी तो मैंने दूर से देखी हैं लेकिन मानो वो कमल की पंखुड़ियों हैं। जिस दिन इन आँखों की चोट लगती है उस दिन हज़ारों लोग कराहते हैं। लेकिन मेरे प्रति जैसा प्रेम भाव अब रखे हो वैसा ही रखना।