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ईसुरी की फाग-2 / बुन्देली

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बैठी बीच बजार तमोलिन ।

पान धरैं अनमोलन ।

रसम रीत से गाहक टेरै, बोलै मीठे बोलन

प्यारी गूद लगे टिपकारी, गोरे बदन कपोलन

खैर सुपारी चूना धरकें, बीरा देय हथेलन

ईसुर हौंस रऔ ना हँसतन, कैऊ जनन के चोलन

भावार्थ


अपने द्वार बैठी तुम तमोलन अनमोल पान धरे हो । रम्य रीति से ग्राहकों को बुलाती हो और मुस्कराती हो तो तुम्हारे

गाल पर जो फोड़े का निशान रह गया है, वह कितना प्यारा लगता है । जब चूना, कत्था, सुपारी मिलाकर पान किसी

की हथेली पर रखती हो तो किसको होश रह जाता होगा ।