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ई गरमी बेसरमी / राम सिंहासन सिंह

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ई गरमी बेसरमी देख धूम मचईते आयल हे।
तरवा के धूर चढ़ल कपरवा बिन पानी छछनायल हे।।

नदियन के उतरल सिंगार हे वन-उपवन उकतायल
ताल-तलईन भी दरार फट-फट हो रहलन घायल।
हे किदोड़ पानी बेयाल से जईसे रकत रिसायल
कंकड-पत्थर, फोड़ा-फंुसी जगह-जगह छितरायल
चिंरई-चिरगुन मन ही मन में जइसे कि पछतायल हे।
ई गरमी बेसरमी देख, धूम मचईते आयल हे।।

दिन चढ़ते ही आसमान से लगे इंगोरा बरसल,
गरम हवा झकझोरे सौंसे धरती जैसे लहकल।
राकस के जइसे समाज हे अस्त्र-सस्त्र ले बहकल
साता-सता के जन-जन के ऊ आँधी अईसन सनकल
भस्मासुर के रूप भयंकर दसो-दिसा छायल हे!
ई गरमी बेसरमी देख धूम मचईते आयल हे।।

परकिरति के अँचरा में तितली हे जईसे नेसल
मन हे बहुत उदास अंग-अंग में काँटा पेसल
लाँघ सीमा आतंक आज हड़कम्प मचा उदबेसल
ई साछात मउवत के देवता सगरो उमतायल हे।
ई गरमी बेसरमी देख, धूम मचईते आयल हे।।

झोंक-झोंक के आग आऊ केतना कबतक छछनायत
आयत बरखा झर-झर तब येकर गरमी झरजायत
सेर अगर तो सवासेर येकरो भी तो मिल जायत
देके नाम-नकेल सिंध आऊ पूँछ येकर तोड़वायत
ई खूँखार जनावर सब के फसल चिबा पगुरायल हे।
ई गरमी बेसरमी देख, धूम मचईते आयल हे।।