ई सब नीक लगैछ अहूँके / शम्भुनाथ मिश्र
ई सब नीक लगै अछि हमरो, ई सब नीक लगैछ अहूँकेँ
ई सब देखि रहल छी हमहूँ, ई सब देखय पड़त अहूँकेँ
जन्म दिवस पर केक कटाबी, स्वयं चीखि सबकेँ चिखबाबी
मोमक बत्ती गाड़ि केकमे, बच्चाकेर उत्साह बढ़ाबी
बैलुनकेर पथार लगाबी, लोक बजा थपड़ी बजबाबी
‘हैप्पी वर्थ’क गीत गाबि सब आनन्दक हम धार बहाबी
ज्वलित शिखा जीवन-प्रतीक थिक तकरे हम सब फूकि मिझाबी
ई सब नीक लगै अछि हमरो, ई सब नीक लगैछ अहूँकेँ
हो विवाह कहियो दूनूकेँ, वर कन्याकेँ भेट कराबी
होटलमे औंठी पहिरा कय तकर ‘भीडियो फिल्म’ बनाबी
गर्दनिमे माला पहिरा कय तकरा पुनि फोटो खिचबाबी
एकान्तीमे गप्प करा कय दूनू पक्षक प्रेम बढ़ाबी
समधी समधिन हाथ मिलाकय धन्यवाद कहि मोन जुड़ाबी
महफिल रंगारंग करै लय ‘ऑर्केस्ट्रा’केँ सेहो बजाबी
भोज-भात ओ ताम झामसँ दुहू पक्षकेर मान बढ़ाबी
ई सब नीक लगै अछि हमरो, ई सब नीक लगैछ अहूँकेँ
‘मैरेज एनभर्सरी’ मनाबी, सामाजिक इतिहास बनाबी
के कतेक बेर मना चुकल अछि ताहि सभक दृष्टान्त सुनाबी
रंग विरंगक पोज बना कय संगसंग फोटो खिचबाबी
पत्नी संगे कय विवाह पुनि, पुनि हुनकर उत्साह बढ़ाबी
अभिवादन आ पैकेट संगहि आँखि कानकेँ सेहो जुड़ाबी
बोतल संगहि होटलकेर सब चमक-दमकमे खुसी लुटाबी
ई सब नीक लगै अछि हमरो, ई सब नीक लगैछ अहूँकेँ
पैघ कुलक छी पाग लगाबी, अपनहि कुलमे दाग लगाबी
इतर जातिमे कय विवाह हम अपने मनकेर बाग लगाबी
अंतरजाति विवाह होइत छै, प्रेमक प्रबल प्रवाह होइत छै
दू खाढ़ी केर अन्तरमे दूनू परिवार तबाह होइत छै
परिवारक सम्मान घटा कय सामाजिक सम्मान बढ़ाबी
ई सब देखि रहल छी अपने, ई सब देखय पड़त अहूँकेँ
पक्ष तथा तिथि के बुझैत अछि, पोथी पतरा नहि सुझैत अछि
व्यर्थ थीक पतरामे लीखल ग्रह गणनाकेँ के पुछैत अछि
तिथि निर्णय अखबार करै अछि से मोजर संसार करै अछि
हो उपनयन कराबक ककरो, गायत्री परिवार करै अछि
ई सब नीक लगै अछि हमरो, ई सब नीक लगैछ अहूँकेँ
जनिका नहि पढ़बा सँ मतलब सैह आब प्राचार्य होइत छथि
जे गायत्री मन्त्र न जानथि सैह आब आचार्य होइत छथि
संस्कारित करबाक नाम पर सबकेँ चाही उत्तम भोजन
जाति धर्म आचार-विचारक नहि समाजकेँ रहल प्रयोजन
सड़ल पुरान व्यवस्था त्यागू, देश बढ़ल अछि बहुतो आगू
ई सब देखि रहल छी हमहूँ, ई सब देखय पड़त अहूँकेँ
ई सब नीक लगै अछि हमरो ई सब नीक लगैछ अहूँकेँ
पण्डित अपन समेटथु पतरा, कोन काज अछि सोमक जतरा
जहिया पलखति सैह नीक दिन, खाइत रहू कतरि कऽ कतरा
सर कुटुम्ब सब ‘गेस्ट’ भेल छथि, घरबैया सब ‘होस्ट’ भेल छथि
‘गेस्ट’ ‘होस्ट’ केर चक्करमे बाँकी जे बचला ‘टोस्ट’ भेल छथि
हो कोनो संस्कार ताहि लय नहि पण्डितकेर रहल प्रयोजन
गेस्ट-होस्टकेर एकहि इच्छा नीक निकुत बस चाही भोजन
ई सब नीक लगै अछि हमरो, ई सब नीक लगैछ अहूँकेँ
अकबक भय हम देखि रहल छी, सबटा बुझितो लीखि रहल छी
व्यर्थ माथकेँ पीटि रहल छी, अपन बाबरी सीटि रहल छी
बूढ़ भेल छी से नहि सोचब, अपन देहकेँ अपने नोचब
पोता कहइछ बाबा जागू, नवका नियम भेलै अछि लागू
जातिक बन्धन नहि आवश्यक, सब काबिल ककरा के रोकत
सब परिपक्व बुझय अपनाकेँ, आब न तेँ क्यो ककरो टोकत
सबकेँ सब अपने दुसैत अछि, वैह काज अपनो करैत अछि
सब क्यौ अपने करी निरीक्षण, संस्कारक होयत संरक्षण
ई सब सोचि रहल छी हमहूँ, ई सब सोचय पड़त अहूँकेँ
ई सब नीक लगै अछि हमरो, ई सब नीक लगैछ अहूँकेँ
हम मैथिल छी मिथिला हमरे मैथिलत्वकेर पाग लगाबी
हमरे पूर्वज छला अयाची तनिके बाड़िक साग लगाबी
पुरस्कारलय व्याकुल मनुआँ दाव-पेंचकेर ताग लगाबी
साहित्यिक सुरभित कानन बिच व्यक्तित्वेमे दाग लगाबी
जे समाजकेर कहबथि भूषण, तनिकहि घरमे भरल प्रदूषण
पैघ सभाकेर बनथि सभापति, तनिके घरमे भाषा दुर्गति
मैथिलीक हमही संरक्षक कहथि मंच पर अपनहि नाचथि
गरजथि मिथिला मैथिलीक हित घरमे जा कय हिन्दी छाँटथि
अपनहि घरमे स्वयं उपेक्षित कोना मैथिली बढ़तै आगू
आत्म निरीक्षण करी स्वयं सब अपन-अपन चिन्तनमे लागू
ई सब सोचि रहल छी हमहूँ ई सब सोचय पड़त अहूँकेँ