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उंगलियाँ भूल आई हूँ / सुदीप बनर्जी
Kavita Kosh से
उंगलियाँ भूल आई हूँ, दफ़्तर में
अनामिका में फँसी अंगूठी
रह गई है मेज़ पर
मैं वापस ले आऊंगी
उन्हें शनिवार को
तुम्हारे लिए बुनने को स्वेटर
हम ऊन का रंग तय कर लें
इन सदियों में, तब तक