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उगना / वीरा
Kavita Kosh से
सूर्योदय के समय
रोपे गए बिरवे
को कुचलते उनके
फ़ौजी बूट
सूर्यास्त तक क़दमताल
करते रहे
और अगले सूर्योदय तक
हर ख़ूनी पंजे के
निशान पर
एक और बिरवा उग आया था
उतना ही हरा-भरा।
(रचनाकाल : 1977)