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उठती सी बरिआं मनै आलकस आवै / हरियाणवी
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हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
उठती सी बरिआं मनै आलकस आवै
चालदी नै बाट सुहावै
री सो हर की प्यारी
नित उठ गंगा जी मैं न्हाणा
नित उठ धारा जी मैं न्हाणा
री सो हर की प्यारी
हाथ लोटा कांधे धोती
सखि जगावण जाणा
री सो हर की प्यारी
नित उठ गंगा जी मैं न्हाणा
हाथ बी धोए पैर बी धोए
अंग मल मल धोए
री सो हर की प्यारी
नित उठ गंगा जी मैं न्हाणा
नहाए धेए जद बाहर लीकड़ी
गंगा जी नै सीस नुआया
री सो हर की प्यारी
नित उठ गंगा जी मैं न्हाणा
चन्दर सखी भजो बाल किरसन
जब हर के चरण चित लाया
री सो हर की प्यारी