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उत्तरदाई मैं ही / चंद्र रेखा ढडवाल
Kavita Kosh से
मैं ही करूँगी वहन
योगक्षेम तुम्हारे कर्मों का
कारण हूँ इसलिए नहीं
इस लिए कि तुम्हें प्यार करती हूँ
तुम नहीं ही करते नहीं कहती
पर उतना ही कि उत्तरदाई मैं ही ठहरूँगी
हर उस साँस के लिए जो तुम लोगे
तुमने क्या दिया नहीं जानती
पर म्मैम्ने चाहा था
कि मेरे माथे पर होंठ तुम्हारे
मंदिर की दहलीज़ पर फूलों-से चढ़्ते
मस्तक नहीं हुआ मेरा मन्दिर की देहरी
या फूल तुम्हारे होंठ नहीं
क्या कहूँ
पर चाह मेरी ही थी
वहन मैं ही करूँगी योगक्षेम
तुम्हारे कर्मों का