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उत्‍तर दिशा की ओर जानेवाले / कालिदास

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वक्र: पन्‍था य‍दपि भवत: प्रस्थितस्‍योत्‍तराशां
     सौधोत्‍संगप्रण‍यविमुखो मा स्‍म भूरुज्‍जयिन्‍या:।
विद्युद्दामस्‍फुरित चकितैस्‍तत्र पौरांगनानां
     लोलापांगैर्यदि न रमसे लोचनैर्वञ्चितो∙सि।।

यद्यपि उत्‍तर दिशा की ओर जानेवाले तुम्‍हें
मार्ग का घुमाव पड़ेगा, फिर भी उज्‍जयिनी
के महलों की ऊँची अटारियों की गोद में
बिलसने से विमुख न होना। बिजली चमकने
से चकाचौंध हुई वहाँ की नागरी स्त्रियों के
नेत्रों की चंचल चितवनों का सुख तुमने न
लूटा तो समझना कि ठगे गए।