भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उदास रात / उमा अर्पिता
Kavita Kosh से
रात उदास है
बेहद उदास
जिंदगी क्या है
महज
कब्र की-सी खामोशी...
तुम्हीं कहो दोस्त
आज की रात
दर्द को
कविता में ढालूँ
या फिर
कविता को
दर्द बन जाने दूँ...?