उनकी नींद कितनी सुखद है / राजेन्द्र देथा
शिशु सोते नहीं अर्द्धरात्रि तक
विश्राम भी नहीं करेंगे वे
थोड़ा और हँसेंगे अभी
और बताएंगे तुम्हें कि हँसना क्या होता है?
शिशु अपनी मुस्कान से याद दिलाएंगे तुम्हें
प्रेमिका के पहले स्पर्श की,
लुहार के घर नरेगा के पैसे आने के बाद
द्वार पर खड़ी मुळकती उसकी लुगाई की,
बेटी को विदा कर एकांत में बैठे माँ-बाप की।
शिशु की मुस्कान निश्चितता दर्शाती है
और बताती है कि अब सब कुछ शुभ है!
सोते हुए शिशु-
विचरणरत हैं अपने माँ-बाबा के बाएं निलयों में,
खेल रहे हैं बर्तन मांजती माँ के हृदय में
छींके में गिरते बर्तनों की थिरक पर।
शिशु सोते नहीं अर्द्धरात्रि तक
विश्राम भी नहीं करेंगे वे।
और देखिए –
नींद में सोते हुए शिशु
अचानक मुळकते हैं तो
कितने आत्मीय लगते हैं!
2. उनकी नींद कितनी सुखद है।
वह प्रभात में अपने पुरुष को
नींद में छोड़कर उठ जाती है
और पिलाती है आटा-पाणी
व छाण बलकती बकरियों को
और निकल पड़ती है उन
स्थानों के लिए जहां रात्रि में गायों ने गोबर त्यागा होगा
जिसे वह तगारी में भर लाएगी और इकठ्ठा कर देगी
आंगन के एक कोने में रखे गोबर के जमाव पर
तदुपरांत ग्वाला आवाज देगा
बकरियों के लिए संपूर्ण बास को
और उसके बच्चे सिरकीनाका
खोलेंगे बकरियों की रस्सी का,
उसका पुरुष निकल जाएगा
खेत में सूड़ के लिए कुल्हाड़ी को कंधे किए
भरी दोपहर निकल पड़ेगी वह भी
सिर पर भाते और कांख में शिशु को दबाए।
“बीच मारग चकौरी में चल रहा होगा हेदर का कोई सिंधी गीत
या ट्रैक्टरों में गाई जा रही होंगी पठानों की कव्वालियां”
पूरा दिन मेहनत के बाद धणी-लुगाई
निकल पड़ेंगे मांधारा होते ही खेत से
जवी-काचरों के ढेर लिए हुए,
घर पर बड़ी बेटी ने बना रखी होगी गाठ और
छोटा बेटा गया होगा छाछ लेने अपने चाचा के यहां।
फिर टाबरों को सुला वे कोशिश करते हैं सोने की
अपनी छत के टेण गिनते हुए बतियाते हैं परस्पर-
कि कैसे अगले महीने केसेसी भरेंगे
कि कैसे मिलेगा बडी़ बेटी को सबळ घर
कि बिचेट लड़का दशमी के बाद कहाँ पढ़ेगा?
और देखिए कितना सुखद है कि
बातों में नींद भी आ जाती है
फिर प्रभात भेरी बजती है
और
वे फिर निकल पड़ते हैं …!