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उपहास न करना / रणविजय सिंह सत्यकेतु
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वक़्त की कई क्रॉसिंग पर
टँगी हैं परिवर्तन की चाबियाँ
ग़ौर करना
और ध्यान से उठाना
बग़ल की बहुरंगी दीवारों पर
लिखी हैं उद्गारों की किताबें
पढ़ते जाना
और मर्म को समझना
चाबियाँ हाथों को ख़ूब पहचानती हैं
दीवारें आँखों को भलीभाँति पढ़ती हैं
मर्म भरे शब्दों को कभी क्रॉस न करना
क्रॉसिंग पर खड़ी भीड़ का
कतई उपहास न करना
रुला देंगे वक़्त के बेलौस थपेड़े
उमड़ पड़ेगा भावनाओं का ज्वार
और
हुंकार कर उठेंगी मूक खड़ी दीवारें ।