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उम्र / केशव
Kavita Kosh से
कभी
काटे नहीं कटती
कभी
कट जाती
देखते
देखते
दहलीज़ के इस ओर
सुबह
उस ओर
शाम
बीच में पसरी
एक लम्बी दोपहर।