भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उम्र का दौर / उमा अर्पिता
Kavita Kosh से
इक उम्र
वो भी आएगी, जब
चढ़ी धूप
मुंडेरे से उतर
आँगन के किसी कोने में
सिमटती/खिसकती चली जाएगी!
बदलने लगेंगे शब्दों के/चीजों के अर्थ
बदलती जाएगी हर परिभाषा
और होने लगेगा यकीं, कि
आसमाँ छू लेना
सचमुच असंभव है...!