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उर के अंदर देखो तो / दीनानाथ सुमित्र
Kavita Kosh से
जाति-धर्म से ऊपर उठ कर देखो तो
झाँक के अपने उर के अंदर देखो तो
मंजिल तेरी दूर अगर है तेज चलो
अगर अँधेरा है तो सूरज बनो, जलो
स्वप्न सुहाना हर- पल सुंदर देखो तो
जाति-धर्म से ऊपर उठ कर देखो तो
झाँक के अपने उर के अंदर देखो तो
दुश्मन को पहचानो, उससे जंग करो
जितने भी हैं मित्र सभी को संग करो
कल आने वाला है बेहतर देखो तो
जाति-धर्म से ऊपर उठ कर देखो तो
झाँक के अपने उर के अंदर देखो तो
कितनी सदियाँ बीत गईं धीरे-धीरे
मुर्दे ही जलते आये गंगा-तीरे
जीवन पर कुछ आज सोचकर देखो तोे
जाति-धर्म से ऊपर उठ कर देखो तो
झाँक के अपने उर के अंदर देखो तो