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उसतै मिलना चाहूं फेर कै / मेहर सिंह
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इस पर राजकुमारी अपनी सखियों से क्या कहती है-
उसतै मिलना चाहूं फेर कै
मारी जले नै आड़ै घेर कै
मैं जल्द बुझाऊं जल गैर कै जलूं बिरह की आग मैं
वो छैला मेरे मन मैं बस ग्या
रोग लगा कै कड़ै डिगरग्या
वो प्रदेशी हद करग्या मैं उसके बैराग मैं।
मैं उसकी वो मेरा साजन होगा
दो शरीरों का एक मन होगा
जणुं वो कद दिन होगा जब होली खेलूं फाग मैं
गुरु लखमीचन्द मेट कसर दे
ईश्वर इच्छा पूरी कर दे
मेहर सिंह छन्द धर दे जणुं फूल टांग दिया पाग मैं।