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उसने कहा था / विमलेश शर्मा

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दाब था
एक घुटन थी

चेतना को उर्ध्व पाकर
काजल जला था रात भर

और यूँही बेबात
बुझी आँखों को
कजरारे हैं नैन तुम्हारे
उसने कहा था!