भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उसने कहा था / विमलेश शर्मा
Kavita Kosh से
दाब था
एक घुटन थी
चेतना को उर्ध्व पाकर
काजल जला था रात भर
और यूँही बेबात
बुझी आँखों को
कजरारे हैं नैन तुम्हारे
उसने कहा था!