उससे क्या रिश्ता-नाता है / कमलेश द्विवेदी
वो आता है तो भाता है जाता है बहुत रुलाता है।
मैं अक्सर सोचा करता हूँ-उससे क्या रिश्ता-नाता है।
मैं उससे मिलकर गीत लिखूँ
मैं उससे मिलकर ग़ज़ल कहूँ।
कुछ और न मुझको याद रहे
जब भी मैं उसके साथ रहूँ।
उसकी ख़ुशियाँ दें ख़ुशी मुझे ग़म उसका ग़म पहुँचाता है।
मैं अक्सर सोचा करता हूँ-उससे क्या रिश्ता-नाता है।
पहले भी अक्सर आता था
अब भी ख़्वाबों में आये वो।
दिल चुरा लिया था पहले ही
अब नींद चुरा ले जाये वो।
पर जब-जब उसको चोर कहूँ-वो हँसता है मुस्काता है।
मैं अक्सर सोचा करता हूँ-उससे क्या रिश्ता-नाता है।
मेरा तन मेरा है लेकिन
मन की तो उससे यारी है।
वो रिश्तेदार नहीं फिर भी
उससे कुछ रिश्तेदारी है।
यह जटिल पहेली दिल समझे लेकिन दिमाग़ चकराता है।
मैं अक्सर सोचा करता हूँ-उससे क्या रिश्ता-नाता है।