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उस तरह / हरीश करमचंदाणी
Kavita Kosh से
वह कोई सपना नहीं
छू सकता हूँ मैं उसे
आँसू की तरह
आँख से बहकर
हौले से लुढकने तक
वह सिर्फ मेरा हैं
फिर मिट्टी में
कण की शक्ल अख्तियार करते हुए
जान लेता हूँ मैं
जीवन के उच्छ्वास
मैं भय से सिहर जाता हूँ
तब नहीं आता पास तुम्हारे
तुम्हे भय से नजदीकियां पसंद नहीं
मैं उससे मुक्त हो
चाहता आना पास तुम्हारे
प्रेम तुम्हारा पाने को