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उस स्त्री के बारे में / अनुराधा ओस
Kavita Kosh से
सोचतीं हूँ
उस स्त्री के बारे में
जो दूर कुँए से
भर लाती थी जल
और सोख लेती थी प्यास
सोचतीं हूँ
उस स्त्री के विषय में
जो समुद्र मंथन कर
निकाल लेती थी
स्नेह
और धर देती थीं
हमारी रोटियों पर
सोचती हूँ
उस स्त्री के बारे में
जिसने पहली बार फूँक
मारी होगी चूल्हे
में पेट की अग्नि बुझाने को
उन स्त्रियों के विषय में
सोचती हूँ
जो नहीं देखतीं कभी आईना
जो न बैठीं हो कभी ट्रेन में
जिसने कभी फेसवॉश का नाम न सुना हो
जिनका चेहरा धोता है
उनके मेहनत का जल
सोचती हूँ तो और
सोचने का मन होता है॥