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ऊँघती है आग / केदारनाथ अग्रवाल

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मैं
को
खा रहा है
मैं
अधमरा आदमी
गा रहा है;
भैरवी,
विहाग,
देसराग!
ऊँघती है आग

रचनाकाल: १०-११-१९६२