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ऋतु राज / बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा ‘बिन्दु’
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मंद पवन वसंत के अब मंद-मंद मुस्काय
तापर फागुन चढ़ि गई घूंघट लिये हटाय।
निकला मूॅछ आम्र का महुआ गया फुलाय
पोर-पोर में रस भरा पोखर गया सुखाय।
फूल पलास देख लिए देख लिए ऋतु राज
पिहु-पिहु पपिहा बोले सरगम जैसे आज।
धानी चुनर ओढ़ि के अब मधुवन करे श्रृंगार
हरष गया यह देखि के बुलबुल करे विहार।
रंग-गुलाल सी तितली जहाँ-तहाँ इतराय
रस फागुन में भीजकर गया जैसे लपटाय।
चढ़ि जवानी आई गई बूढ़ हो गये सयान
यौवन देखि खिल गये होठन पर मुस्कान।
बिरहन से मत पूछिए उनकी लम्बी तान
यौवन से चूनर हटी लगी नजर की बान।