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ऋतु वसंत में माधव अइलै / कुमार संभव
Kavita Kosh से
पग नुपूर छम-छम करनें
ऋतु वसंत में माधव अइलै।
सिंगार सोलहोॅ करि धरती सजलोॅ छै
स्वागत में चिकना के फूलोॅ फूललोॅ छै
धारी-धारी आरी-आरी पर लागै,
नव नील देह कान्हा के ही बिछलोॅ छै
मुसकी-मुसकी पग धरनें, वंशी बजैनें
ऋतु वसंत में माधव अइलै।
गीत वसंत के अमर करलकै
ठोरोॅ पर वंशी धारण करि केॅ,
वर पावी झूमै नाचै वसंत छै
वसुधा के अमर गान बनी केॅ,
धरती के कण-कण केॅ मधुमय करनें
सखी! ऋतु वसंत में माधव अइलै।
माधव वसंत की? वसंत बनी माधव
ई धरा धाम पर सच में अइलोॅ छै,
ई पछुआ-पुरवा बाग-बगीचा में
वसंत रूप धरि पिय हमरे अइलोॅ छै,
नित नूतन राग अमर वंशी में गैनें
ऋतु वसंत में माधव अइलै।