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एकाकी जीवन ले आयें / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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एकाकी जीवन ले आयें
एकाकी पथ पार करो तो
आता नभ में चाँद अकेला
जग का मग जगमग हो जाता
जग का पग डगमग हो जाता
तुम मानव होकर एकाकी
मानवता साकार करो तो
एकाकी पथ पार करो तो
एक अनेक बना लेता है
किन्तु अनेक न एक समझता
इस उलझन में इन तर्त्यो के
हृदय-वीन का राग उलझता
यदि समर्थ हो, डूब रहा है,
अपना बेड़ा पार करो तो
एकाकी जीवन ले आये
एकाकी पथ पार करो तो
सोचो, समझा, कदम सँभालो,
यह दुनिया आसान नहीं है
उच्च शिखर है, किन्तु देख लो
बढ़ने को सोपान नहीं है
है सँकरी पगडंडी, लेकिन
अपना पथ विस्तार करो तो
एकाकी जीवन ले आये
एकाकी पथ पार करो तो