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एक अकेली प्रार्थना / स्मिता सिन्हा

उस रोज़
अकेली थी वो
जैसे घर के ताखे पर
जलते दीये की लौ में
अकेली हो एक प्रार्थना
उस रोज़
स्याह रात में लिपटे
आकाश की नीरवता से स्तब्ध
चाँद भी था अकेला
अकेली थी सुबह सवेरे
मखमली ओस की बूँदें
जैसे बंद आँखों में
रह जाते हैं
कुछ आँसु अकेले
जैसे रह जाता है
उम्मीदों की गर्भ में पलता
एक छोटा सा सपना अकेला
यहाँ अकेले होने का दंश
हर किसी को झेलना पड़ता है
एक ही जीवन में कई कई बार
अपने निश्चित प्रारब्ध के साथ...