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एक आत्मबोध / रणजीत
Kavita Kosh से
इसे तुम ज़िंदगी कहते हो!
इसे ही?
क्या ज़िंदगी सचमुच यही है
गंदगी या बंदगी कुछ और होना चाहिए था नाम इसका
ज़िंदगी तो यह नहीं है!