एक गिलास पानी / प्रेमशंकर शुक्ल
एक गिलास पानी
घूँट-घूँट भर जाता है जिस से
प्यास का दरिया
और फैल जाती है तृप्ति की लहर
एक गिलास पानी न होता
तो कितना गूँगा होता हमारा प्यार
और रात पार करा देने वाले लम्बे क़िस्सों का
सूखने से कैसे बचता कण्ठ
एक गिलास पानी कभी-कभी
लेकर आता है यादों का समन्दर
जिसमें गिलास को थामे हथेली पर
मुस्कुराहट की धूप पड़ रही है
और हो रही हड़बड़ाहट को
थोडे़-से सम्पादन की ज़रूरत है !
किसी भी घर की
सबसे कोमल, तरल और सम्मानजनक चीज़ है
एक गिलास पानी । दरवाजे़ पर आए अतिथि को
मान-दान से दिया जाता है जिसे।
(जलपान आतिथ्य की अलख है !)
ताना-बाना की तरह एक गिलास पानी
बुनता है हमारी परस्परता
और आपसदारी को करता है गझिन
पनघट से गिलास तक आने की
पानी की यात्रा कितनी कठिन है
जानती हैं जिसके बारे में
सबसे अधिक स्त्रियाँ । आरम्भ से
स्त्रियाँ ही ज़िन्दा रखती आई हैं
पानी और प्यास ।
एक गिलास पानी देने की इच्छा
उजड़ने से बचाए रखती है
मनुष्यता का घर
हलक में उतरता पानी
धन्यवाद है
झील-झरनों, नदियों-कुओं के प्रति
भाषा सम्प्रति है
पानी की कायनात
बूझने की !