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एक जीवन है कई आसक्तियाँ हैं / सोनरूपा विशाल
Kavita Kosh से
मन के सागर में बहुत सी मछलियाँ हैं।
एक जीवन है कई आसक्तियाँ हैं।
सोचते हैं प्राप्य का अब लोभ छोड़ें,
प्राप्ति की सन्तुष्टियों को ही जियें हम।
किंतु जब सूखा हलक हो ख़्वाहिशों का,
फिर भला थोड़ा सा ही जल क्यों पियें हम।
ये हर इक मन की सहज अनुभूतियाँ हैं ।
फूल से ख़ुशबू की बिछुड़न की कहानी
फूल के झरने से ही सम्पूर्ण होगी
यानि तन से साँस की माला की टूटन
एक दिन मिट्टी सदृश ही चूर्ण होगी
ज़िन्दगी है कोष हम आवर्तियाँ हैं ।
प्यार की पतवार वाली कश्तियों से
रौशनी की झील पूरी नाप लेंगे
और नफ़रत के मलिन तालाब सारे
प्रेम रज-भरकर समूचा पाट देंगे
पास हम सब के यही सम्पत्तियाँ हैं
एक जीवन है कई आसक्तियाँ हैं।