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एक तुम्हीं में मन अटका है / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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एक तुम्हीं में मन अटका है, एक तुम्हारी ही है याद।
ललचाता रहता पाने को नव-नव नित्य मधुर-रस-स्वाद॥
प्राण-‌इन्द्रियाँ बुद्धि-चिंता-सब तुममें ही संतत संलग्र।
अतल अथाह प्रेम-रस-सागरमें ही हूँ मैं नित्य निमग्र॥
मिलती परम प्रेरणा तुमसे, मिलता अमित शक्तिका दान।
बना हु‌आ हूँ जिसको पाकर मैं नित अतुलित शक्ति-निधान॥
जीवन-मूल तुम्हीं हो, केवल तुम्हें देखता हूँ नित पास।
मधुर मनोहर तुममें ही, बस, रहता मेरा नित्य निवास॥