एक नास्तिक के प्रार्थना गीत-5 / कुमार विकल
[ साम्यवादी देशों के नाम ]
जीवन ज्योति जले बुझ जाए
लेकिन कविता काम न आए
ऐसा अग्निदान दो प्रभु जी
कविता ही सूरज बन जाए.
अब तक अँधेरे में प्रभु जी
एक मशाल लिए फिरता था.
दुनिया रोशन कर दूँगा मैं
ख़ुद को दिए—दिए फिरता था.
देख रहा हूँ मगर अँधेरा
दुनिया में बड़ता जाता है.
जो विश्वास लिए फिरता था,
ख़ुद से ही लड़ता रहता है.
ऐसे संकट —क्षण में प्रभु जी
कवि को ही कन्दील बनाओ.
मेरे लड़ते विश्वासों को
पास बुला कर कुछ समझाओ.
अँधेरों की साज़िश है यह
रोशनियाँ आपस में उलझें.
प्रभु जी, तुम्हीं जतन करो कुछ
रोशनियों के झगड़े सुलझें.
वरना इस संकट —वेला में,
कवि की उमर तो ढलती जाए.
तिस पर उसको सतत सताएँ
शंकाओं के बढ़ते साए.
जीवन ज्योति जले बुझ जाए
लेकिन कविता काम न आए.