एक नास्तिक के प्रार्थना गीत-7 / कुमार विकल
जब मैं दुनिया के पहले शराबख़ाने की कल्पना करता हूँ
तो मुझे कविता और ईश्वर
एक साथ पी रहे नज़र आते हैं
ईश्वर धुत्त हो चुका है
और ढेर—सी शराब पीने के बावजूद
कविता की सजग आँखों में
अब भी एक शिकायत —भरी प्रतीक्षा है
“ कवि, तुम इतनी देर से क्यों आते हो?
एक समय के बाद कविता की उम्र ढल जाती है
तब वह किसी के काम नहीं आती है.”
“ मैं जानती हूँ तुम कहाँ थे
गाड़ी —लोहारों के अड्डे में दारू पी रहे थे
और यहाँ आने के लिए अपनी फटी कमीज़ को सी रहे थे
मैं जानती हूँ ,तुम्हें वहाँ एक सुख मिलता है
लेकिन इस धुत्त पड़े ईश्वर को देखो
इसे मेरे संभ्रांत शरीर के छन्दों से
दुख मिलता है.”
‘ कवि सुना है, गाड़ी लोहारों के अड्डे में
भी एक कविता
आती है
जो रात—रात भर
नाचती और गाती है.”
“ कवि,सुनो तो.
आख़िर तुम्हारी क्या मजबूरी है
जो अपने अड्डॆ को छीड़ कर यहाँ आते हो
एक कविता से दूसरी कविता तक भटकते रहते हो.”