एक पल पहले का पल / वीरू सोनकर
हाँ मैं तुम्हे खोजूँगा काले और गोरेपन के मध्य
रहस्यमयी सांवलेपन में
दिन और रात के बीच अनिवार्य संध्या के
उस एक पल में पकड़ लूँगा
लौटने के बाद पकडूँगा,
लौटने के ठीक एक पल पहले का पल
जहाँ हमेशा से एक संभावना साँस लेती है कि
तुम्हे रोका जा सकता था
उस मोड़ पर जहाँ से हमारे रास्ते अलग हुए
खुद को खड़ा रखूंगा उस मोड़ से पहले
और एक अथक प्रतीक्षा में जिद सा पकड़ रखूँगा खुद को
प्रेम होने से पहले का वह प्रथम परिचय
पकड़ कर चलूँगा तुम्हारी ओर
जहाँ प्रेम ने अनायास हमारी ऊँगली पकड़ी थी
और हम अपने-अपने पतों पर बने रहते हुए भी विलुप्त हुए थे
मैं स्तब्ध नहीं होऊँगा कि रात से पहले का वह सांवलापन कहाँ गया
मैं वहीँ रहूँगा मेरे प्रेम, तुम जहाँ से अलग हुए थे
ठीक उससे एक पल पहले
एक कदम पहले
एक पहर पहले
हमारे प्रेम से पहले,
उस प्रथम परिचय की ऊँगली पकड़ चलता रहूँगा तुम्हारी ओर
मैंने देखा था वहीँ कहीं रास्ते में प्रेम ने पकड़ा था हमे
मैं वहीँ खोजूंगा उसी रास्ते में मिले सांवले रहस्य को
जिसका एक हिस्सा किसी रेखाचित्र सा मुझमे अभी भी जीवित है
उस रेखाचित्र के रंग पकडूँगा
जो एक हँसी से बिखर दौड़ते थे और एक ब्लैक एंड व्हाइट दुनिया
अचानक से कलरफुल हो जाती थी
मैं वहाँ फिर से खुद में रंग भरूँगा