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एक बात / मनीष मूंदड़ा
Kavita Kosh से
मुझे तुमसे एक बात कहनी है
जब भी मैं आँखें बंद करता हूँ
तुम आ जाते हो
ठीक मेरे सामने
मेरे अंदर तक
तुम्हारी रोशनी, मुझे अंदर तक रोशन कर देती है
तुम्हें मैं फिर से पा लेता हूँ, अपने अंदर, अपने समीप
पर तुम्हें अपने पास रखने की कोशिश में
आँखें खुल जाती हैं
और मिलते हैं कुछ आँसू
ये सिलसिला रोज का हैं
जब से तुम गए हो
पर तुम फिर भी हो मेरे साथ
मेरी जि़ंदगी में
मैं जि़ंदा हूँ
शायद
तुम्हें अपनी यादों में जि़ंदा रखने के लिए