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एक बूँद, ओस की / सुनीता शानू
Kavita Kosh से
वह उतरी
आसमान से
रिम-झिम सावन की
फ़ुहार बनकर
झिलमिलाई आँगन में
असंख्य मोतियों का
हार बनकर
छू लिया होंठों ने
जो एक दिन
महकी उठी
सोंधी बयार बनकर
बरसती रही
मधुबन में मेरे
सावन की पहली
बौछार बनकर।
अहसास प्रेम का
हुआ जब उसे
बह चली आँसुओं की
धार बनकर
पिघलती रही
हृदय मे मेरे
प्रियतम का पहला
प्यार बनकर...