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एक माँ की कविताएँ-1 / नरेन्द्र जैन

एकदम
आवेश में
खिंचकर मेरा हाथ
पेट पर लगा दिया था
'सुनो, तुम अपने बच्चे का
हिलना-डुलना महसूस कर सकते हो'

एकदम
अविश्वसनीय था वह सब
उस धरती की गहराइयों में
वहाँ बच्चे का हाथ-पैर हिलाना
आतंकित कर देने वाली थी वह ख़ुशी

उसका यह कहना भी
कि तुम्हारे हाथ-पैर और चेहरे के
छोटे-छोटे आकार वहाँ साँस ले रहे हैं

ख़ून में रची-बसी
साँस लेती कविता की
प्रक्रिया से गुज़रते हुए
उसने मुझे परास्त कर दिया था