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एक वस्त्र ही / तेजी ग्रोवर
Kavita Kosh से
देह में
शब्द नहीं बन रहे
और समय
आज सारा दिन
खूँटी पर सफ़ेद शर्ट हिलती रही
चिड़ियाँ डरकर उड़ती रहीं-
'पानी पियो', कोई कहता है
'तेईस साल पहले की एक बूंद
ही सही, पियो तो'-
सूनी देह की ओर
अपनी देह की पूरी नमी से देखते हुए
कोई कहता है
शब्द सहज है
और दुख
कमरे में
एक वस्त्र ही हवा का उत्तर देता है