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एक शक्ति विराट / दिविक रमेश
Kavita Kosh से
साथियो!
आओ
सरहदों के अर्थ बदल दें...
- सरहदें
जिनके मानी हैं--
- रौंदी हुई ज़मीन,
- ख़ून
- और संदेह में घूरती आँखें...
- खटाखट
- बदलते हुए पैर...
- अपनी अपनी ढफली
- अपना-अपना राग...
आओ इन्हें
निमंत्रण-पत्र की तरह
स्वागत-हेतु बना दें।
- युद्ध--
- ज़मीन,
- आकाश
- या समुद्र का नहीं
- आदमी का है।
हाँ, युद्ध
ताक़त और अधिकार से
- अधिकार और शक्ति का है।
युद्ध
एक पहचान है
- ऎसी पहचान
- जो कभी हिरोशिमा
- और कभी वियतनाम है,
किन्तु जिसे
झुठलाया जाता है बार-बार।
युद्ध
एक प्रक्रिया है
- किसी के चेहरे से नकाब उतारने की
- हालाँकि वह चेहरा
- रहस्यमय
- ख़ूब ढोंग रचता है...
- ख़ूब जाना-पहचाना है...
- कभी हिटलर
- कभी अमरीका
- और कभी गोरा है
या फिर
इसी घराने का बिगड़ैल छोरा है।
- हाँऽ
- उतारो चमड़ी, मेरे नादान भेड़ियो
- देखो,
- जिसे तुम 'नस्ल' कहते हो--
- मनुष्य हैं
- तुम्हारे ईश्वर की तरह
- वे हर जगह हर वक़्त हैं।
तुम्हारी गर्दनों पर सवार
अब इनकी कटार है...
- क्योंकि अब
- सरहदों के मानी बदल गए हैं--
- एक शक्ति विराट।