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एक शहर को छोड़ते हुए-4 / उदय प्रकाश
Kavita Kosh से
हम एक
टूटे जहाज़ के डेक की तरह हैं
और हमें अपने ऊपर
खेलते बच्चों की ख़ातिर
नहीं डूबना है
हमें लड़ना है समुद्र से और
हवा से और संभावना से ।
जो तमाशे की तरह देख रहे हैं हमारा
जीवन-मरण का खेल
जिनके लिए हम अपने विनाश में भी
नट हैं दो महज़ ।
कठपुतलियाँ हैं हम
हमारी संवेदनाएँ काठ की हैं
प्यार हमारा शीशम का मरा हुआ पेड़ है
जिनके लिए
उन सबकी भविष्यवाणियों के ख़िलाफ़
हमें रहना है..
रहना है, ताप्ती ।
हम उनके बीजगणित के हर हल को
ग़लत करेंगे सिद्ध और
हर बार हम
उगेंगे सतह पर ।
और हमारी छाती पर सबसे सुन्दर और
सबसे आज़ाद बच्चे खेलेंगे ।
डूबेंगे नहीं हम
कभी भी, ताप्ती,
डेक है टूटे जहाज़ का
तो क्या हुआ ?