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एक सुरीली शाम का जादू-3 / अनिल पुष्कर
Kavita Kosh से
कुछ साधक
वाद्यों का राग ढूँढ़ते
कुछ रागों के मानी,
कुछ रागों की रफ़्तार परखते
कुछ रागों की बानी,
कुछ रागों का इतिहास खोजते
कुछ रागों की सानी
कुछ जन्नत का लुत्फ़ उठाएँ
कुछ थिरक रहे बेमानी
मंच की सूरत ज्यूँ नवेली जोगन बैठी है
अँधेरे गलियारों की चीख़ों पे पर्दादारी हैं.
हलाल कराहें, मधुर धुनें चीर न पाई
अलहदा साँसें न काट सकीं रागों के पर ।
मौत की रागिनियाँ बजती हैं
हत्यारों की धुन का रुतबा है
मदहोशी में डूबे हैं सब सुधीजन ।