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एक ही छत / सुरंगमा यादव
Kavita Kosh से
67
साँसों की पूँजी
बन्द न कर सकी
कोई तिजोरी।
68
बजती रही
समय सरगम
अबाध क्रम।
69
शब्द दो-चार
प्रकट कर देते
भाव-विचार ।
70
भीड़ है बड़ी
मानवता की कमी
फिर भी पड़ी ।
71
सत्य अटल
मिलता कर्मफल
आज या कल।
72
पाषाण जैसा
मानव मन हुआ
आँसू न दया।
73
श्रमिक भाग्य
श्रम की पूँजी हाथ
बारहों मास।
74
उजड़े बाग
प्रदूषित नदियाँ
मानव जाग।
75
करे उजाड़
अहंकार की बाढ़
रिश्तों का गाँव ।
76
वर्षा की झड़ी
मजदूर के घर
ठण्डी सिगड़ी।
77
एक ही छत
कमरों की तरह
बँटे हैं मन