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एण्ड्रोमीडा / ग्योर्गोस सेफ़ेरिस
Kavita Kosh से
मेरी छाती में ज़ख़्म फिर से खुलता है
जब सितारे बुझते हैं और मेरी देह के साथ सँयुक्त हो जाते हैं
जब आदमियों की पदचाप के बाद सन्नाटा छा जाता है ।
ये पत्थर जो बरसों के दरम्यान डूबते रहे हैं, कितनी दूर तक
ये मुझे अपने साथ खींचेंगे ?
समुद्र, समुद्र, कौन है वह जो इसे ख़ाली कर सुखा सकता है ?
मैं हर सुबह देखती हूँ हाथ बाज और गिद्ध को इशारे से बुलाते हुए,
मैं चट्टान से बँधी हूँ पीड़ा ने जिसे मेरा अपना बना दिया है,
मैं वृक्षों को देखती हूँ जो मृतक की काली शान्ति में साँस लेते हैं
और तब मुस्कानों को, मूर्त्तियों की, निस्पन्द ।