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एतेक बात डाकू चुहर कहैय / मैथिली लोकगीत

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मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

एतेक बात डाकू चुहर कहैय
मार-मार जे दुर्गा रोकै छै
सुन रौ डाकू चुहर सुनि ले
सत रौ केलही कोहबर घरमे
सतयुग छीयै कलयुग अऔतै
सत बारल चुहरा नै रहतौ
युग-युग नाम दुनियाँमे नै चलतौ रौऽऽ।
हौ गात के चोलिया हौ सवा लाख के
मखमल चोली गातमे पेन्हने
सात सय दरजी सीकऽ मरलै
तइयो चोली उबाइने रहि गेल
से चोलीया चन्द्रा गात लगौने
बिना बटन चोली लगै छै
सबे समान चुहरा मोटा बन्है छै
घुरि-घुरि चुहरा चोली निङहारै
केना अय चोलीया मैा गात से चोरेबै गै।
केना के चोलीया गै गात से लेबै गै
सत नै धोखामे गै मैया करबीयौ
तिरिया मानि पलंग पर चढ़ितौ
रंग रभस पलंगा पर करिती
गात से चोली चन्द्रा के लइतीयै
मन के ममोलबा कोहबरमे मिटा दैतीयै गै।।
हौ महिमा हौ डोलि गेलै नारायण जी के
सबे समान चहरा काँख लगबैये
कोहबर घर से चुहरा जाइये
घुरि घुरि चुहरा गात निङहारै
हौ असली निशानी चोलीया रहलै
ताहि समयमे दादा नरूपिया
बचबा वशमे देवता पड़ल छै
गाँजा पीकऽ देवता चलैय
बचवा धमिनियाँ दादा के घेरलै
सुनऽ सुनऽ हय दादा नरूपिया
बारह बरिस हम असरा लगौलीयै
स्वामी दरशन हमरा भेटल
दरशन दऽ कऽ नरूपिया जाइ छह
छत्तीस राग के बँसुली बजाबै छह
मुरली शब्द मयूर नचैय
एक्के रती मुरली बसुलिया सुनाबीयौ
कनीके तऽ हमरा सुना दे हय।।
हौ तहि समयमे दादा मुरली टेरै छै
भट-भट भट-भट चोली आय खुगलै
तखनी नजरि चुहरा के पड़ि गेल
तबे जवाब तऽ चुहरा दै छै
बामा हाथे चुहर चोली पकड़ै छै
आ एकटा हाला तखनी पड़लै
उनटे चोली चन्द्रा के छीनै छै
चोलीया के लऽकऽ आय डाकू जखनी भागि गेलै यौ।।